हिन्दी वर्णमाला का क्रम से कवितामय प्रयोग-बेहतरीन है। *अ* चानक *आ* कर मुझसे *इ* ठलाता हुआ पंछी बोला *ई* श्वर ने मानव को तो *उ* त्तम ज्ञान-दान से तौला *ऊ* पर हो तुम सब जीवों में *ऋ* ष्य तुल्य अनमोल *ए* क अकेली जात अनोखी *ऐ* सी क्या मजबूरी तुमको *ओ* ट रहे होंठों की शोख़ी *औ* र सताकर कमज़ोरों को *अं* ग तुम्हारा खिल जाता है *अ:* तुम्हें क्या मिल जाता है.? *क* हा मैंने- कि कहो *ख* ग आज सम्पूर्ण *ग* र्व से कि- हर अभाव में भी *घ* र तुम्हारा बड़े मजे से *च* ल रहा है *छो* टी सी- टहनी के सिरे की *ज* गह में, बिना किसी *झ* गड़े के, ना ही किसी *ट* कराव के पूरा कुनबा पल रहा है *ठौ* र यहीं है उसमें *डा* ली-डाली, पत्ते-पत्ते *ढ* लता सूरज *त* रावट देता है *थ* कावट सारी, पूरे *दि* वस की-तारों की लड़ियों से *ध* न-धान्य की लिखावट लेता है *ना* दान-नियति से अनजान अरे *प्र* गतिशील मानव *फ़* रेब के पुतलो *ब* न बैठे हो समर्थ *भ* ला याद कहाँ तुम्हें *म* नुष्यता का अर्थ.? *य* ह जो थी, प्रभु की *र* चना अनुपम... *ला* लच-लोभ के *व* शीभूत होकर *श* र्म-धर्म सब तजकर *ष* ड्यंत्रों के खेतों में *स* दा पाप-बीजों को बोकर *हो* कर स्वयं से दूर *क्ष* णभंगुर सुख में अटक चुके हो *त्रा* स को आमंत्रित करते *ज्ञा* न-पथ से भटक चुके हो। 🕯️🕯️🕯️
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